तानाशाह हंटर फटकारता है. लोग सहमकर जमीन पर बिछ जाते हैं. कुछ पल बाद उनमें से एक सोचता है—‘तानाशाही की उम्र थोड़ी है. जनता शाश्वत है.’ उसके मन का डर फीका पड़ने लगता है.
‘अहं ब्रह्मास्मिः!’ कहते हुए वह उठ जाता है. उसकी देखा–देखी कुछ और लोग खड़े हो जाते हैं. सहसा एक नाद आसमान में गूंजता है—
‘वयं ब्रह्माव.’ फिर एक–दूसरे से होड़ करते हुए बाकी लोग भी खड़े हो जाते हैं. जनता को खड़े देख तानाशाह के हाथ से हंटर छूट जाता है. वह जमीन पर झुक जाता है.
ओमप्रकाश कश्यप