Archive | जनवरी 2010
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दंश — पांचवी किश्त
धारावाहिक उपन्यास गरीब लोगों का तो वक्त भी सगा नहीं होता, बाबू. वह बदलता है, ताकि हम जैसे बेसहारा लोगों पर नई-नई विपत्तियां ला सके. उन्हें कठघरे में खड़ा कर सके. सब्जी मंडी बसी तो सब्जी से लदे बड़े-बड़े ट्रक वहां आने लगे. काम बढ़ा तो पल्लेदारों की जरूरत बढ़ी. रोजगार के अवसरों का विस्तार […]
दंश – चौथी किश्त
धारावाहिक उपन्यास इस प्रकार मेरा नामकरण बापूधाम की परंपरा के अनुसार ही हुआ. मैं परमात्मा सेन कहलाने लगा. इस नामकरण की सूचना परमात्माशरण को कई वर्ष बाद मिली. तो भी वह बहुत प्रसन्न हुआ. चुनाव हारने का जो गम था, वह इस घटना के बाद काफी कम हो गया. अपनी खुशी जाहिर करते हुए परमात्माशरण […]
दंश – तीसरी किश्त
धारावाहिक उपन्यास आज बापूधाम को बसे वर्षों बीत चुके हैं. विधवा की मामूली झोंपड़ी से महानगर का सबसे बड़ा वोट उत्पादक क्षेत्र बनने की, बापूधाम की कथा बेहद रोमांचक है. मगर कितने लोग हैं जो इस हकीकत से परिचित हैं. सिवाय बस्ती के दो-चार बूढ़ों या सीलन और दीमक से नाममात्र को बचे थोड़े-से सरकारी […]