Archive | जुलाई 2011

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दंश : बाइसवीं किश्त

दंश % बाइसवीं किश्त धारावाहिक उपन्यास मैं जानता हूं बेटा कि तू मुझसे नाराज है. मेरे वर्ताब के लिए तू मुझे जी-जान से कोस रहा होगा. इसका तुझे पूरा हक है. पूरी तरह सच्चा है तेरा गुस्सा. तेरी नफरत, तेरी हर शिकायत और तेरा प्रत्येक इल्जाम मेरे सिर-माथे. तेरा कुसूरवार हूं मैं. आज से नहीं […]

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दंश : इकीसवीं किश्त

दंश : धारावाहिक उपन्यास जीवन को जो खेल समझते हैं, वे खिलवाड़ का शिकार बनकर रह जाते हैं. सवेरे सलीम के जगाने पर आंखें खुलीं. वह देर से मुझे खोज रहा था. उसी ने बताया कि मेरा मालिक प्लेटफार्म पर आ चुका है. मुझे कोसता हुआ वह भट्टी सुलगाने में व्यस्त है. तब आंखें मलते […]

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