Archive | दिसम्बर 2011

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ईश्वर भागा

नए वर्ष की पूर्व संध्या पर बच्चे फुलझड़ियां छोड़ रहे थे. तभी ईश्वर उधर से आ निकला. बच्चों को खुश देख वह ठिठक गया, बोला—‘ऐसा क्या है, जो तुम इतने खुश हो?’ ‘कल नए वर्ष का पहला दिन है.’ ‘समय तो अनंत प्रवाह है. इसमें पहला और अंतिम क्या!’ ‘हम इंसान छोटी–छोटी चीजों में इसी […]

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एक पुराना सवाल

लघुकथा गणित के सवालों से तो आप खूब दो-चार हुए होंगे. परंतु इस सवाल का गणित से कोई वास्ता नहीं है. या शायद हो भी. दरअसल यह एक बहुत पुराना सवाल है. एक बकरी है, जिसके गले में रस्सी है. रस्सी का दूसरा छोर खूंटे से बंधा है. बकरी को आजादी है कि रस्सी के […]

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विचारहीन क्रांतियों का भविष्य

इसी दिसंबर के दूसरे सप्ताह में दक्षिणी–पूर्वी चीन में मछुआरों के गांव वुकान के सैकड़ों किसान वहां की केंद्र सरकार के विरोध में सड़क पर उतर आए. देखते ही देखते प्रदर्शनकारियों की संख्या 20000 तक पहुंच गई. गुस्सा एक ग्रामीण की पुलिस हिरासत में हुई मौत पर भड़का था. स्थानीय प्रशासन का कहना था कि […]

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जनसंस्कृति की रक्षा के लिए जरूरी है आर्थिक विकल्पों की खोज

सरकार रिटेल सेक्टर के दरवाजे विदेशी निवेश के लिए खोलने जा रही है. यूपीए सरकार का यह पूर्व–निर्धारित निर्णय था. यदि मनमोहन सरकार की चली होती तो इस फैसले पर पिछले कार्यकाल में ही मुहर लग जाती. आप चाहें तो इसको पूंजीपतियों के सहारे टिकी सरकारों की विवशता भी कह सकते हैं. खुली अर्थव्यवस्था में […]

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जरूरी है जनांदोलनों की चमक का बने रहना

खबर है कि अन्ना हजारे के नेतृत्व में चलाया जा रहा आंदोलन अपनी चमक खो रहा है. जिस आंदोलन ने सरकार को संसद में बहस करवाने के लिए विवश कर दिया उसकी चमक मात्र चार महीने में फीकी पड़ जाना किन्हीं अर्थों में चिंताजनक भी है. कुछ विद्वान आंदोलन की असफलता का कारण इसकी मध्यवर्ग […]

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