Archive | अगस्त 2009

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यदा-यदा हि…

‘यदा-यदा हि धर्मस्य….धरा पर जब-जब दुर्जन, दुराचारी बढ़ेंगे, भले लोग छले जाएंगे…मैं अवतार लेकर सज्जनों का उद्धार करने आऊंगा…’ ईश्वर ने गीता में कहा था, लिखा नहीं था. जिसने लिखा, उसने लिखने के बाद कभी उससे जिक्र तक नहीं किया. आरती, प्रसाद, भोग, घंटा-ध्वनि, पूजा-अर्चना, नाम-जप, जय-जयकार और अमरलोक-सुंदरी लक्ष्मी के संगवास में ईश्वर के […]

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झूठ का सच

बाजार से गुजरते हुए कुत्ते की नजर दुकान में टंगे एक चित्र पर पड़ी तो गढ़ी की गढ़ी रह गई. उसके लिए उसकी कुतिया दुनिया की सबसे खूबसूरत मादा थी. सड़क पर चलते समय वह दोपाया मादाओं को रोज ही देखता. उनके पुते हुए चेहरे देख उसे हंसी आने लगती. निश्चय ही उनमें कुछ सुंदर […]

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आलोचना-पसंद

अपने-अपने सफर पर जाते पादरी, मौलवी और पुजारी को एक तिराहे ने आपस में मिला दिया. आपसी संवाद की संभावना न होने के कारण तीनों बचकर निकल जाना चाहते थे. मगर रास्ता कौन दे! जान-बूझकर आड़ा हो जाने की हेठी कौन कराए—यानी बात फंस गई. त्रिभुज के तीन कोनों की तरह तीनों एक जगह खड़े […]

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दूरदृष्टि

महाभारत-कथा के अंतिम सर्ग तक सुनते-सुनते कुत्ता अचानक चौंक पड़ा, सोचने लगा—आखिर कोई तो बात होगी जो धर्मराज युधिष्ठिर समेत सारे पांडव हिमालय पर एक-एक कर गलते चले गए. स्वर्ग-द्वार पर सशरीर दस्तक देने वाला वाला प्राणी एक कुत्ता था. उसका पूर्वज. धर्म का देवता. कितना महान होगा वह. लेकिन आदमी है कि सिर्फ पांडवों […]

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धूर्त्त लोमड़ी

जंगल से गुजरते कुत्ते का सामना लोमड़ी से हुआ तो वह चकरा गया. कारण था, लोमड़ी का बदला हुआ रूप. माथे पर तिलक, गले में रुद्राक्ष माला, कंधों पर रामनामी दुपट्टा. वह लोमड़ी के स्वभाव को जानता था. बात-बात में झूठ बोलना, कदम-कदम पर धोखा देना उसकी आदत थी. यह काम वह बिना किसी झिझक, […]

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आक्रोश

शाम का समय. कुत्ता घूमता हुआ बस्ती के बाहर आया और रास्ते में एक झोपड़ी को देख ठिठक गया. झांककर देखा तो भीतर, हाथ में झाड़ू लिए एक बुढ़िया गुस्से से लाल-पीली हो रही थी— ‘आ, तू भी आ मुंह झौंसे, तुझे भी देखूं!’ बुढ़िया कुत्ते को देखते ही बरस पड़ी. कुत्ता पीछे हटा, पर […]

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आडंबर

कसाई के पीछे घिसटती जा रही बकरी ने सामने से आ रहे संन्यासी को देखा तो उसकी उम्मीद बढ़ी. मौत आंखों में लिए वह फरियाद करने लगी— ‘महाराज! मेरे छोटे-छोटे मेमने हैं. आप इस कसाई से मेरी प्राण-रक्षा करें. मैं जब तक जियूंगी, अपने बच्चों के हिस्से का दूध आपको पिलाती रहूंगी.’ बकरी की करुण […]

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क्रीतदास

ईश्वर बदल चुका है. अब वह अपनी चिंता पहले से ज्यादा करता है. भक्त का मन देखने, उसकी भावना को सम्मान देने से अधिक वह चढ़ावे पर नजर रखता है. चढ़ावा अच्छा और भक्त की जेब भारी हो तो ईश्वर खुद चलकर भक्त के दरवाजे तक चला आता है. ‘ईश्वर मालदार के लिए उसके खूंटे […]

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अपराधबोध

सड़कछाप कुत्ता मजदूरों, कबाड़ बीनने वाले बच्चों, भिखारियों और फटेहाल आदमियों पर ही क्यों भौंकता है, कोई यह जाने न जाने, कुत्ते को अच्छी तरह मालूम था. पिछली बार वह एक धनी मालिक के बंगले पर रहता था. उसके पास बेशुमार दौलत थी. बड़े-बड़े आदमियों का वहां आना-जाना था. पर न जाने क्यों वह डरता […]

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निर्मैल्य

गंगा स्नान के बाद साधु बाहर निकला तो कुत्ता उसके पीछे-पीछे चल दिया. दोनों काफी दूर निकल गए. ‘वे प्राणी भी कितने अभागे हैं, जो गंगा तट पर आकर बगैर नहाए रह जाते हैं.’ कुत्ते को सुनाते हुए साधु ने अपनी श्रेष्ठता का दंभ भरा. उसकी त्वरित प्रतिक्रिया हुई— ‘वे लोग और भी अभागे हैं, […]

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