Archive | जुलाई 2009
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कथा गुणीराम
एक घर के बाहर मेहमानों की भीड़ और भीतर से आती पकवानों की मनभावन गंध से कुत्ते ने अनुमान लगा लिया कि आज कोई भोज है. वह एक ठिकाना देख वहीं लेट गया. तब तक बस्ती के दूसरे कुत्ते भी वहां पहुंच चुके थे. आदमी के साथ रहते हुए वे उसके तीज-त्योहारों, ब्याह-भोज के बारे […]
सपना
एक कुत्ता बाजार से गुजर रहा था. एक स्थान पर रेहड़ी, खोमचे वालों का जमघट-सा दिखाई पड़ा तो वह रुक गया. ऐसी जगह पेट भरने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता. अमीरों से अधिक गरीब और मेहनतकश दूसरे की भूख का सम्मान करते हैं. मगर उस दिन देर तक कोई ग्राहक न आने पर […]
जमींदार की बेटी
कुत्ता रास्ते में जा रहा था. तभी एक घर से रोने की आवाज सुनाई पड़ी. ‘यह तो जमींदार की बेटी की आवाज है.’ कुत्ते के मुंह से अनायास निकला. ‘जमींदार की बेटी को भला क्या कमी है, जो वह रोएगी?’ साथ चल रही कुतिया ने कहा. कुत्ता भी हैरान था— ‘कोई न कोई कारण तो […]
कांटा
एक दार्शनिक ध्यान-मग्न अवस्था में चलते-चलते बड़बड़ाए— ‘अध्यात्म की खीर में एक ईश्वर एक कांटा है.’ पीछे चलते कुत्ते ने सुना तो सोच में पड़ गया. उसने दिमाग लड़ाया. लाख सोचा. पर दार्शनिक की उक्ति का रहस्य उसकी समझ में न आया. जितना वह सोचता उतना ही उलझता जाता. दार्शनिक से पूछने के लिए वह […]
पाखंड
पार्क के करीब से गुजरता हुआ कुत्ता ठिठक गया. वहां बच्चे खेल रहे थे. अपने आप में मग्न, दुनिया-जहान की चिंताओं से दूर. सोने-सलोने. उन्हें देखकर कुत्ते को अपने पिल्लों की याद आने लगी. अब तो वे बड़े होकर स्वतंत्ररूप से अपना भोजन जुटा लेते है. मगर जब छोटे थे तो उन्हें साथ लेकर चलना […]
मजबूर ईश्वर
ईश्वर समझता है कि बहुत दिन हुए भक्तों का प्रसाद खाते हुए. सोचता है कि अब तो भक्तों के लिए कुछ करे. जानता है कि हर भक्त कोई न कोई आस लेकर मंदिर आता है. महंगाई का जमाना है. पहले एक पैसा खर्च करके दस लाख की कामना करता था, आजकल प्रसाद दस रुपये का […]
अमृत-भोज
सूरज सिर पर उतर आया था. एक के बाद एक कई घरों में झांकने के बावजूद कुत्ते को निराश लौटना पड़ा था. उसे अपने जीवन से घृणा होने लगी. किंतु रोटी जीवन की सबसे बड़ी अनिवार्यता, उसकी चाहत में घर-घर जाना, दर-दर भटकना, लोगों की लात-बात, मार-दुत्कार सहना मजबूरी. ‘यदि इसी तरह कुछ देर और […]
कवियित्री
कुत्ता कवियों और साहित्यकारों से बहुत प्रभावित था. हालांकि कविता उसके लिए दूर की कौड़ी थी. किंतु कवि की तान पर जब वह सैकड़ों व्यक्तियों को एक साथ अपनी गर्दन हिलाते देखता तो समझ जाता कि बहुत ऊंची बात कही गई है. उस दिन एक घर के सामने से गुजरते हुए कुत्ते को जब पता […]
सड़कछाप
सड़कछाप कुत्ते की जिंदगी भी क्या जिंदगी है. रोटी के मामूली टुकड़े के लिए यहां से वहां भटकना. हर समय लोगों की लात और लानतें सहना. जरा-सी लापरवाही से यदि किसी वाहन से टक्कर हो जाए तो देह चील-कव्वों के लिए वहीं बिखर जाती है…लेकिन कुछ भी हो, इस खानाबदोश जिंदगी में चाहे जितने धक्के, […]
ईश्वरपन
रात के अंधेरे में कुत्ता बस्ती की पहरेदारी कर रहा था. तभी उसकी निगाह एक आकृति पर पड़ी. खुद को गहरे काले लबादे में लपेटे हुए वह बस्ती की गलियों में चक्कर काट रही थी. कुत्ता उसे सावधान करने के लिए भौंका. इसपर वह आकृति पलट गई— ‘शी…!’ उसने चुप रहने का संकेत किया. कुत्ता […]