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अन्नाभाऊ साठे का उपन्यास ‘फकीरा’ : दलितों में वर्ग चेतना का स्वरघोष
पुराने जमाने में धीरोदत्त नायकों के जो गुण हुआ करते थे, वे सब फकीरा के चरित्र में हैं। अपने पिता की भांति वह भी निर्भीक और बहादुर है। पूर्वजों को शिवाजी द्वारा भेंट की गई तलवार पर गर्व करता है। संकटकाल में दूसरों की मदद को तत्पर रहता है। कुछ गुण फकीरा को धीरोदत्त नायकों से भी आगे ले जाते हैं। जैसेकि संकटकाल में सरकारी खजाने को लूटकर गरीबों में बराबर-बराबर बांट देना। दार्शनिकों की भाषा में इसे ‘वितरणात्मक न्याय’ कहा जाता है। उपन्यास का संदेश है कि राज्य जब अपने कर्तव्य में चूक जाए; अथवा सत्ता से नजदीकी रखने वाली शक्तियां मनमानी पर उतर आएं तो वर्ग-संघर्ष आवश्यक हो जाता है। नागरिक समस्याओं की ओर से लापरवाही सत्तु और फकीरा जैसे जन नायकों को जन्म देती हैं।