Archive | मार्च 2010

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दंश – नवीं किश्त

धारावाहिक उपन्यास भीतर शराब अपना रंग दिखा रही थी. दरोगा और सिपाही नशे में झूम रहे थे. भद्दी-घिनौनी गालियां हवा में उछाली जा रही थीं. हा-हुल्लड़ और शोर-शराबे के बीच मां की फरियादें दम तोड़ रही थीं. वह घुटनों में मुंह छिपाए सिसक रही थी. इस उम्मीद में कि शायद किसी को उसपर तरस आ […]

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दंश – आठवीं किश्त

धारावाहिक उपन्यास शायद गलत कहा मैंने. गलतफहमियां पूरे-पूरे परिवार निगल जाती हैं, संभलने का कोई मौका दिए बिना. चोर के पकड़े जाने का समाचार अखबार में छपा. दरोगा के फोटो के साथ. खबर मिलते ही बड़ा दरोगा थाने आ धमका. बापू का अंगूठा लगा बयान पढ़कर उसने नए दरोगा की पीठ थपथपाई….ऊपर से शाबासी दिलवाने….तरक्की […]

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