Archive | दिसम्बर 2009

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दंश—धारावाहिक उपन्यास

दूसरी किश्त नमस्ते, बाबू साहेब! हुजूर! मैं परमात्मा सेन उर्फ परमात्मा शरण वल्द घुरिया, उर्फ घनश्याम आपको अपनी आपबीती सुनाना चाहता हूं—सुनिएगा न! सिरीमान! कहानी शुरू करूं उससे पहले आपसे एक गुजारिश है. जरा धीरज बनाए रखिएगा. क्योंकि बात जरा लंबी है. हां, यदि बोर होने लगेंतो शरमाइएगा मत. हाथ उठा देना. मैं चुप हो […]

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दंश : धारावाहिक उपन्यास

धारावाहिक उपन्यास [मित्रो! लंबे विराम के बाद संधान पर मैं फिर उपस्थित हूं. इस बार संभवत: लंबी मुलाकात के लिए. यह मुलाकात किश्तों में चलेगी. माध्यम होगा उपन्यास—दंश. यह मान लिया गया है कि इंटरनेट लंबी रचनाओं के लिए नहीं है. मेरा मानना है कि गंभीर पाठक रचना की लंबाई नहीं, उसकी गुणवत्ता पर निगाह […]

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