Archive | दिसम्बर 2010
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दंश : 16वीं किश्त
धारावाहिक उपन्यास समस्याएं चुनौती ही नहीं बनतीं, आदमी को जीना भी सिखाती हैं. कई दिनों की अतृप्त आत्मा….गर्मागरम भोजन. बड़ीम्मा का स्नेह–सत्कार. भटकाव के बाद कुछ देर का आराम. जिंदगी बहुरंगी होती है. पर उस क्षण दुनिया की सभी रंगीनियां उस भोजन में विराजमान थीं. शायद इसलिए कि कई दिन के अंधकार के बाद […]