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शबरी-धर्म

माघ-पौष की दांत किटकिटाती रात में भी लोग अखंड मानस-पाठ के लिए जागते रहे. सुबह की किरणों के साथ पाठ भी अपने समापन की ओर बढ़ रहा था. गृहस्वामी समेत सभी को उसे निर्विघ्न संपन्न होते देख खुशी थी. कुछ लोग सुबह होने वाले भोज की तैयारी में जुटे थे. उसके लिए कढ़ाई बीती शाम से ही चढ़ा दी गई थी.
मेहमानों की आवभगत और व्यवस्था में लगी घर की स्त्रियां कोहरे में लिपटी सुबह में अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होने निकलीं. लेकिन दरवाजे से बाहर कदम रखते ही एक बुढ़िया की लाश जमीन पर पड़े देख उनकी चीख निकल पड़ी. उससे रंग में भंग पड़ने जैसी स्थिति बन गई. घर में मौजूद औरत-मर्द बाहर की ओर भागे. मगर दरवाजे से बाहर पड़ी लाश को देखकर उनके पांवों तले की जमीन खिसकने लगी.
‘अरे, यह तो भिखारिन है…!’ एक ने बताया.
‘भोज के इंतजार में शाम ही आ गई होगी, रात को ठंड में बैठे-बैठे अकड़ गई….बेचारी!’ दूसरे ने संगत दी.
पूजा-पाठ के दिन दरवाजे पर लाश देख गृहस्वामिनी को अपशकुन की गंध आने लगी. उसी समय भीतर से पाठ समापन की घोषणा हुई. पंडित दक्षिणा और आरती के चढ़ावे के लिए बुलाने लगा. मगर मेजबान दंपति का उस ओर ध्यान ही नहीं था. घर के दरवाजे पर भिखारिन की मौत को अशुभ मानकर गृहस्वामिनी रोए जा रही थी.
बार-बार बुलावा दे रहे पंडित से जब रहा नहीं गया तो वह आरती का थाल उठाए तेज कदमों से बाहर आया. उचटती-सी निगाह भिखारिन की लाश पर डालकर बोला—
‘हरीओम, हरि….पूरी रामायण खत्म हो गई, फिर भी उसका सार आप लोगों के पल्ले नहीं पड़ा. अरे, जिसे आप साधारण भिखारिन मान रहे हैं, वह तो शबरीमाता हैं. राम-मिलन की साध में युगों-युगों से भटकती हुईं. राम-कथा सुनकर उनकी मुक्ति तो होनी ही थी. सच कहूं, यह तो बड़ा ही पवित्र और अनूठा अवसर है, हरिओम हरि…’
उपस्थित स्त्री-पुरुषों में खुसर-पुसर होने लगी. उसके बाद पंडित गृहस्वामी की ओर मुड़ा, बोला-‘जिजमान, रामायण पाठ समाप्त हो चुका है. आरती की थाल में खाली धूप शोभा नहीं देती. शुभ मुहुरत निकला जा रहा है. जल्दी से दक्षिणा निकालें….हरिओम हरि….!’ गृहस्वामी जेब में हाथ डालने लगा तो वह उपस्थित लोगों की ओर मुड़ा, ‘हरिओम हरि…भक्तगण आप भी चढ़ावा लेकर आरती में हिस्सा लें…’
‘इसका क्या होगा?’ गृहस्वामी ने लाश की ओर इशारा किया.
‘आरती संपन्न होते ही इसके दाहसंस्कार की तैयारी की जाएगी. मैं सरपंच जी से भी बात करूंगा. गांव में इतनी अनोखी घटना घटी है. वह भी सबकी आंखों के सामने. यादगार के तौर पर इस गांव में एक भव्य मंदिर तो बनना ही चाहिए….हरिओम हरि….!’
कुछ देर बाद उस घर से आरती की घंटियां गूंजने लगीं.
बाहर मक्खियां द्वार पर पड़ी लाश को कफन बनकर ढकने का प्रयास करने लगीं.
ओमप्रकाश कश्यप

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