Tag Archive | ओमप्रकाश कश्यप
अन्नाभाऊ साठे का उपन्यास ‘फकीरा’ : दलितों में वर्ग चेतना का स्वरघोष
पुराने जमाने में धीरोदत्त नायकों के जो गुण हुआ करते थे, वे सब फकीरा के चरित्र में हैं। अपने पिता की भांति वह भी निर्भीक और बहादुर है। पूर्वजों को शिवाजी द्वारा भेंट की गई तलवार पर गर्व करता है। संकटकाल में दूसरों की मदद को तत्पर रहता है। कुछ गुण फकीरा को धीरोदत्त नायकों से भी आगे ले जाते हैं। जैसेकि संकटकाल में सरकारी खजाने को लूटकर गरीबों में बराबर-बराबर बांट देना। दार्शनिकों की भाषा में इसे ‘वितरणात्मक न्याय’ कहा जाता है। उपन्यास का संदेश है कि राज्य जब अपने कर्तव्य में चूक जाए; अथवा सत्ता से नजदीकी रखने वाली शक्तियां मनमानी पर उतर आएं तो वर्ग-संघर्ष आवश्यक हो जाता है। नागरिक समस्याओं की ओर से लापरवाही सत्तु और फकीरा जैसे जन नायकों को जन्म देती हैं।
आधुनिक लोककथा/ईश्वर की मौत
ईश्वर की मौत देवनगरी से संदेश वायरल हुआ कि बीती रात ईश्वर दिवंगत हुआ. अगले सात दिनों तक तीनों लोकों में शोककाल लागू रहेगा. इस दौरान न तो इंद्रलोक में अप्सराओं का नृत्य होगा. न कोई हवन, कीर्तन, पूजा–पाठ वगैरह. संदेश की प्रति आधिकारिक रूप से भी तीनों लोकों में पहुंचा दी गई. नारद चाहते […]
आधुनिक लोककथाएं
जनविद्रोह तानाशाह का मन एक बकरी पर आ गया. बकरी भी अजीब थी. बाकी लोगों के आगे ‘मैं…मैं’ करती, परंतु तानाशाह के सामने आते ही चुप्पी साध लेती थी. तानाशाह उसकी उसकी गर्दन दबोचता. टांगें मरोड़ता. कानों को ऐंठ–ऐंठकर लाल कर देता. बकरी तानाशाह की टांगों में सिर फंसाकर खेल खेलती. दर्द भुलाकर उसकी हथेलियों […]
आधुनिक लोककथाएं
आधुनिक लोककथा —एक गाय और भैंस को प्यास लगी. दोनों पानी पीने चल दीं. चलते–चलते गाय ने भैंस से कहा—‘मैं वर्षों तक न भी नहाऊं तब भी पवित्र कही जाऊँगी. ‘कोई क्या कहता है, से ज्यादा जरूरी अपनी असलियत पहचानना है.’ भैंस बोली. गाय की कुछ समझ में न आया, बोली—‘मैं समझी नहीं, तू चाहती […]
अछूत
ईश्वर पुजारी को रोज चढ़ावा समेटकर घर ले जाते हुए देखता. उसे आश्चर्य होता. दिन–भर श्रद्धालुओं को त्याग और मोह–ममता से दूर रहने का उपदेश देने वाला पुजारी इतने सारे चढ़ावे का क्या करता होगा? एक दिन उसने टोक ही दिया—‘तुम रोज इतना चढ़ावा घर ले जाते हो. अच्छा है, उसे मंदिर के आगे खड़े […]
अच्छे दिन
चारों ओर बेचैनी थी. गर्म हवाएं उठ रही थीं. ऐसे में तानाशाह मंच पर चढ़ा. हवा में हाथ लहराता हुआ बोला— ‘भाइयो और बहनो! मैं कहता हूं….दिन है.’ भक्त–गण चिल्लाए—‘दिन है.’ ‘मैं कहता हूं….रात है.’ भक्त–गण पूरे जोश के साथ चिल्लाए—‘रात है.’ हवा की बेचैनी बढ़ रही थी. बावजूद उसके तानाशाह का जोश कम न […]
समाधान
तानाशाह ने पुजारी को बुलाया—‘राज्य में सिर्फ हमारा दिमाग चलना चाहिए. हमें ज्यादा सोचने वाले लोग नापसंद हैं.’ ‘एक–दो हो तो ठीक, पूरी जनता के दिमाग में खलबली मची है सर!’ पुजारी बोला. ‘तब आप कुछ करते क्यों नहीं?’ ‘मुझ अकेले से कुछ नहीं होगा.’ ‘फिर….’ इसपर पुजारी ने तानाशाह के कान में कुछ कहा. […]
राजा बदरंगा है
तानाशाह को नए–नए वस्त्रों का शौक था. दिन में चार–चार पोशाकें बदलता. एक दिन की बात. कोई भी पोशाक उसे भा नहीं रही थी. तुरंत दर्जी को तलब किया गया. ‘हमारे लिए ऐसी पोशाक बनाई जाए, जैसी दुनिया के किसी बादशाह ने, कभी न पहनी हो.’ तानाशाह ने दर्जी से कहा. दर्जी बराबर में रखे […]
तानाशाह—दो
बड़े तानाशाह के संरक्षण में छोटा तानाशाह पनपा. मौका देख उसने भी हंटर फटकारा—‘सूबे में वही होगा, जो मैं चाहूंगा. जो आदेश का उल्लंघन करेगा, उसे राष्ट्रद्रोह की सजा मिलेगी.’ हंटर की आवाज जहां तक गई, लोग सहम गए. छोटा तानाशाह खुश हुआ. उसने फौरन आदेश निकाला—‘गधा इस देश का राष्ट्रीय पशु है, उसे जो […]
मंत्रबल
बैठे-ठाले संघ के सिद्ध–पुरुष का मंत्र द्वारा चीन के छक्के छुड़ाने का बयान सुन, एक उत्साही पत्रकार उनके दरबार में जा धमका— ‘सर! यदि मंत्र–जाप द्वारा दुश्मन की कमर तोड़ी जा सकती है तो परमाणु बम बनाने के लिए अरबों रुपये खर्च करने की क्या आवश्यकता है?’ ‘हट बुड़बक!’ सिद्ध–पुरुष का चेहरा तमतमा गया. आंखें […]