तानाशाह ने पुजारी को बुलाया—‘राज्य में सिर्फ हमारा दिमाग चलना चाहिए. हमें ज्यादा सोचने वाले लोग नापसंद हैं.’
‘एक–दो हो तो ठीक, पूरी जनता के दिमाग में खलबली मची है सर!’ पुजारी बोला.
‘तब आप कुछ करते क्यों नहीं?’
‘मुझ अकेले से कुछ नहीं होगा.’
‘फिर….’ इसपर पुजारी ने तानाशाह के कान में कुछ कहा. तानाशाह ने पूंजीपति को बुलवाया. पूंजीपति का बाजार पर दबदबा था. अगले ही दिन से बाजार से चीजें गायब होने लगीं. बाजार में जरूरत की चीजों की किल्लत बढ़ी तो लोगपरेशान होने लगे. रोजमर्रा की चीजों के लिए एक–दूसरे से झगड़ने लगे. एक–दूसरे पर अविश्वास बढ़ गया. समाज में आपाधापी, मार–काट और लूट–खसोट बढ़ गई. मौका देख पुजारी सामने आया. लोगों को संबोधित कर बोला—
‘हमारी धरती सोना उगल रही है. कारखाने रात–दिन चल रहे हैं. फिर भी लोग परेशान हैं, जरा सोचिए, क्यों?’
‘आप ही बताइए पुजारी जी….’
‘ईश्वर नाराज है. उसे मनाइए, सब ठीक हो जाएगा.’
जैसा सोचा था, वही हुआ. मंदिरों के आगे कतार बढ़ गई. कीर्तन मंडलियां संकट निवारण में जुट गईं.
तानाशाह खुश है. पुजारी और पूंजीपति दोनों मस्त हैं.