चारों ओर बेचैनी थी. गर्म हवाएं उठ रही थीं. ऐसे में तानाशाह मंच पर चढ़ा. हवा में हाथ लहराता हुआ बोला—
‘भाइयो और बहनो! मैं कहता हूं….दिन है.’
भक्त–गण चिल्लाए—‘दिन है.’
‘मैं कहता हूं….रात है.’
भक्त–गण पूरे जोश के साथ चिल्लाए—‘रात है.’
हवा की बेचैनी बढ़ रही थी. बावजूद उसके तानाशाह का जोश कम न हुआ. हवा में हाथ को और ऊपर उठाकर उसने कहा—‘चांदनी खिली है. आसमान में तारे झिलमिला रहे हैं.’
‘पूनम की रात है….आसमान में तारे झिलमिला रहे हैं.’ भक्तों ने साथ दिया.
‘अच्छे दिन आ गए….’ भक्त–गण तानाशाह के साथ थे. दुगुने जोश से चिल्लाए—
‘अच्छे दिन आ…’ यही वह बात थी, जिसपर हवा आपा खो बैठी. अनजान दिशा से तेज झंझावात उमड़ा और तानाशाह के तंबू को ले उड़ा.