बैठे-ठाले
संघ के सिद्ध–पुरुष का मंत्र द्वारा चीन के छक्के छुड़ाने का बयान सुन, एक उत्साही पत्रकार उनके दरबार में जा धमका—
‘सर! यदि मंत्र–जाप द्वारा दुश्मन की कमर तोड़ी जा सकती है तो परमाणु बम बनाने के लिए अरबों रुपये खर्च करने की क्या आवश्यकता है?’
‘हट बुड़बक!’ सिद्ध–पुरुष का चेहरा तमतमा गया. आंखें लाल पड़ गईं, ‘कलयुगी पत्रकार, सच को कभी समझ ही नहीं सकते. नारदजी होते तो अभी दूध का दूध, पानी का पानी कर देते.’
पत्रकार सहम गया. दैवी प्रेरणा से धीरे–धीरे सिद्ध पुरुष का कोप शांत हुआ, बोले—
‘सुनो! एक बार की बात है. हनुमानजी गंधमादन पर्वत पर विश्राम कर रहे थे. तब संत पुरुषों का रेला उनके पास पहुंचकर विनती करने लगा—‘महाराज, देश के उत्तर–पश्चिम में असुर दुबारा सिर उठाने लगे हैं. ऋषिगण परेशान हैं. असुर यज्ञादि को खंडित कर राम कार्य में बाधा पहुंचाते हैं.’
‘रामकाज में बाधा!’ सुनते ही हनुमानजी लाल–भभूका हो गए. वे बुढ़ा भले गए थे. लेकिन बल और तेज ज्यों का त्यों था. सो उन्होंने गदा उठाई और उत्तर–पश्चिम दिशा में चला दी. गदा गिरते ही धरती थर्रा गई. बबंडर आसमान तक छा गया. जोर का धमाका हुआ….’
कहते–कहते सिद्ध–पुरुष कुछ पल रुके. फिर बोले—‘कुछ समझे या कंपलीटली लाल–भुझक्कड़ टाइप पत्रकार हो. चलो हम ही बताए देते हैं—जहां वह गदा जाकर गिरी वह स्थान था—पोखरण और तारीख थी, 18 मई 1974.