महाभारत-कथा के अंतिम सर्ग तक सुनते-सुनते कुत्ता अचानक चौंक पड़ा, सोचने लगा—आखिर कोई तो बात होगी जो धर्मराज युधिष्ठिर समेत सारे पांडव हिमालय पर एक-एक कर गलते चले गए. स्वर्ग-द्वार पर सशरीर दस्तक देने वाला वाला प्राणी एक कुत्ता था. उसका पूर्वज. धर्म का देवता. कितना महान होगा वह. लेकिन आदमी है कि सिर्फ पांडवों का गुणगान करना है. श्वान-देवता को पूछता तक नहीं. दुनिया में बने हजारों-लाखों मंदिरों में श्वान-देवता का एक भी मंदिर नहीं…यह आदमी की कृतघ्नता नहीं तो और क्या है!
‘आदमी के संपर्क में रहकर कुत्तों ने सिर्फ खोया है.’ सोचते हुए कुत्ते ने श्रद्धावनत होकर अपने उस पुरखे को नमन कर तत्क्षण प्रतीज्ञा की, ‘मैं अपने पूर्वज, महान श्वान-देवता को उनका सम्मान वापस दिलाकर रहूंगा.’
दूसरे दिन कुत्ते ने श्वान देवता की प्रतिष्ठा के लिए जंगल में एक सभा का आयोजन किया गया. सम्मेलन में दूर-दूर से कुत्ते आए. सभी एक स्वर में श्वान-देवता का प्रशस्ति-गायन करने लगे. बार-बार तालियां बज रही थीं. तभी दो चोटीधारी वहां से गुजरे और सभा की कार्रवाही देखने के लिए खड़े हो गए. एक की चोटी में सात गांठें थीं, दूसरे की चोटी में मात्र एक. एक गुरु था, दूसरा चेला.
‘हमें भी अपने श्वान-देवता का मंदिर बनाना चाहिए…’ सुझाव आया. जोरदार तालियां बजीं. सुझाव ध्वनिमत से स्वीकार कर लिया गया.
‘सुझाव तो ठीक है, लेकिन मंदिर का पुजारी कौन बनेगा?’ एक कुत्ते ने समस्या रखी. इसपर सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे.
‘श्वान-देवता की सेवा का अवसर अगर मुझे मिल जाए तो बहुत उपकार होगा…’ एक कोने से तेज आवाज उठी. कुत्तों का ध्यान दोनों चोटीधारियों की ओर चला गया. सभा में खुसर-पुसर होने लगी. फिर यह सोचकर कि जब तक कुत्तों में से कुछ पुजारी का काम सीखें, तब तक आदमी को पुजारी बनाने में कोई हर्ज नहीं है. दोपाया यदि कुत्ता-मंदिर का पुजारी बनेगा तो बाकी जानवरों की अलग मंदिर बनाने की हिम्मत ही नहीं पड़ेगी.
‘क्या तुम श्वान-देवता के मंदिर का पुजारी बनने को तैयार हो?’ सभा के अध्यक्ष ने पूछा.
‘मैं तो जन्मजात पुजारी हूं, जिजमान! मंदिर में मूर्ति हो या नहीं, अगर है तो किसकी है! यह मैं कभी नहीं सोचता.’ लंबी चोटी वाला बोला.
‘गुरुदेव? क्या अब हमें एक कुत्ते को देवता मानकर पूजना पड़ेगा?’ चेला असमंजस में था.
‘धरती पर तैंतीस करोड़ देवता है, एक और बढ़ जाए तो क्या फरक पड़ता है!’ गुरु ने उत्तर दिया. फिर चेले को सोचने का अवसर दिए बिना बोला—
‘यह मत सोच कि मूर्ति किसकी है. यह सोच कि आज कुत्ते का केवल एक मंदिर है. कल को दूसरा बनेगा. उसके बाद और भी बनेंगे. एक दिन धरती पर कुत्तों के हजारों मंदिर बन जाएंगे. उस समय उन सबका महंत कौन बनेगा? वही, जो सबसे पुराने मंदिर का पुजारी होगा…है कि नहीं?’
चेला गुरु की दूरदृष्टि के आगे नतशिर हो गया.
– ओमप्रकाश कश्यप