एक दार्शनिक ध्यान-मग्न अवस्था में चलते-चलते बड़बड़ाए—
‘अध्यात्म की खीर में एक ईश्वर एक कांटा है.’
पीछे चलते कुत्ते ने सुना तो सोच में पड़ गया. उसने दिमाग लड़ाया. लाख सोचा. पर दार्शनिक की उक्ति का रहस्य उसकी समझ में न आया. जितना वह सोचता उतना ही उलझता जाता. दार्शनिक से पूछने के लिए वह उनपर भौंका, सामने आकर रास्ता काटा. बराबर में चलकर उनकी बात सुनने का प्रयास किया, यह सोचकर कि शायद इस रहस्य के बारे में वह आगे कुछ कहें. मगर दार्शनिक अपनी ही धुन में डूबे आगे बढ़ते गए.
‘चलकर पुजारी से पूछना चाहिए, वह भी तो ईश्वर के सान्निध्य में रहने का दावा करता है.’ कुत्ते ने सोचा और दौड़ता हुआ मंदिर जा धमका. कुत्ता पुजारी के पास पहुंचा और उसके सामने अपनी समस्या रखी—‘अध्यात्म की खीर में ईश्वर एक कांटा है, इसका क्या रहस्य है?’
‘धर्म विरोधियों की सोहबत में रहकर तू आजकल इतना उल्टा-सीधा सोचने लगा है. आगे से मंदिर में कदम मत रखना. अगर आया तो डंडे से स्वागत करूंगा.’
‘महाराज, मंदिर में मुझे आने भी कौन देता है. मैं तो पिछवाड़े पड़ी झूठन खाकर गुजारा कर लेता हूं.’
‘झूठन और प्रसाद भी उस कुत्ते को मिलेगा जाएगा, जिसकी बुद्धि शुद्ध-सलामत हो.’
‘आप कुपित हो जाएंगे, यह तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था.’ कहकर कुत्ता पूंछ हिलाने लगा. इसपर पुजारी कुछ नर्म पड़ा. बोला—
‘ईश्वर को कांटा बताने वाला हर मनुष्य पापी है, उसकी बुद्धि नष्ट-भ्रष्ट हो चुकी है. उनकी बातों पर विश्वास करने वाले भी घोर पापी, अपराधी और धर्म के दुश्मन हैं. एक दिन वे सभी नर्क के भागी बनेंगे.’
‘नर्क का नाम सुनकर कुत्ता घबराया. फिर साहस बटोरकर पूछा—‘मगर जिन्होंने यह कहा, वे बहुत पहुंचे हुए, विद्वान दार्शनिक हैं, लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं. जब वे बोलते हैं तो हजारों की भीड़ जुट जाती है. कोई भी अनर्गल बात वे भला कैसे कह सकते हैं?’
‘तो जाकर उसी से पूछ, हर राह चलते पागल को दार्शनिक मैं तो नहीं मान सकता.’ पुजारी ने झुंझलाकर डंडा उठा लिया. कुत्ता सावधान था. वहां से फौरन भाग छूटा. दार्शनिक की बातों को वह दिमाग से निकाल देना चाहता था. लेकिन जितना वह उन्हें भुलाने का प्रयास करता, उतनी ही उसकी जिज्ञासा प्रबल होती जाती. चलते-चलते रास्ते में जो भी मिला उसी से कुत्ते ने इस उक्ति का रहस्य जानने की कोशिश की. मगर निराशा ही मिली. सामने मस्जिद दिखाई दी तो वह अपनी जिज्ञासा लिए मौलवी के सामने भी उपस्थित हो गया. समस्या रखने पर मौलवी ने बताया—
‘ईश्वर पर चर्चा करना हमारे मजहब से बाहर है. वह कांटा है या फूल, इस बारे में उसी से पूछ जो उसपर विश्वास करते हैं.’
‘अगर ईश्वर की जगह अल्लाह रख दिया जाए तो?’
‘अल्लाह महान है, सबका भला करने वाला है. उसको कांटा बताने वाले काफिर हैं. मजहब के दुश्मन हैं. उनका ईमान नंगा हो चुका है. फिर भी जो उनकी बात पर विश्वास करेगा, वह एड़ियां रगड़-रगड़कर मरेगा, उसकी लाश को चील-कव्वे खाएंगे. कयामत के दिन उसे दोजख में ढकेल दिया जाएगा, जहां उसे दहकते अंगारों पर लिटाया जाएगा…’ यह देख कि मौलवी थमने का नाम ही नहीं ले रहा है, कुत्ता वहां से भाग छूटा. इसके बाद वह चर्च, गुरुद्वारे, दरगाह समेत और भी कई धर्म-स्थलों पर गया. मगर कहीं उसकी जिज्ञासा का समाधान नहीं हुआ. आखिर चलते-चलते वह थक गया. भूख-प्यास से प्राण अकुलाने लगे. लेकिन सवाल अब भी ज्यों की त्यों मन में अड़ा हुआ था. बल्कि तिरछा होकर बरछी की तरह दिमाग में चुभने लगा था.
‘जिसने समस्या दी है, समाधान भी वही देगा.’ कुत्ते ने सोचा और दार्शनिक की खोज में जुट गया. उसके बाद कुत्ते ने उसी दिशा में दौड़ लगा दी जिधर दार्शनिक को जाते हुए देखा था. जंगल में एक पेड़ के नीचे छाया-सी दिखाई दी तो उसकी आंखों में चमक आ गई. करीब जाकर देखा तो वही दार्शनिक थे. गहन विचारशील मुद्रा में. कभी-कभी अनायास ही बड़बड़ाने लगते-‘अध्यात्म की खीर में एक ईश्वर एक कांटा है.’ उनके चेहरे पर तनाव के चिन्ह थे मानो समस्या में बुरी तरह उलझे हों. कुत्ता उनके पीछे जाकर चुपचाप बैठ गया…अनायास दार्शनिक का चेहरा खिल उठा. आंखों में चमक आ गई. उसके बाद खड़े हो हाथ उठाकर बोले, मानो पूरी दुनिया को बताना चाह रहे हों- ‘अध्यात्म मनुष्य की चेतना का विस्तार है. ईश्वर मनुष्य की आस्था का मात्र एक बिंदु. अध्यात्म जिज्ञासा की कसौटी है, ईश्वर कोरी गल्प. अध्यात्म मानवीयबोध की सतत उन्नतिशील सर्वोच्च अवस्था है, ईश्वर सिर्फ ठहराव. ईश्वर मनुष्य की आध्यात्मिक उड़ान में व्याप्त शिथिलता, अध्यात्मरूपी खीर में कांटा है. दार्शनिक की बातें सुनकर कुत्ते को लगा जैसे ज्ञान के सहज प्रवाह में वह हवा में उड़ने लगा हो. उसने दूर ही से दार्शनिक को नमन किया और अपने रास्ते पर बढ़ गया.
ओमप्रकाश कश्यप
बहुत सही संदेश !!
bahut hi achha laga padhke.