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ईश्वरपन

रात के अंधेरे में कुत्ता बस्ती की पहरेदारी कर रहा था. तभी उसकी निगाह एक आकृति पर पड़ी. खुद को गहरे काले लबादे में लपेटे हुए वह बस्ती की गलियों में चक्कर काट रही थी. कुत्ता उसे सावधान करने के लिए भौंका. इसपर वह आकृति पलट गई—
‘शी…!’ उसने चुप रहने का संकेत किया. कुत्ता कुछ देर शांत रहा. मगर कुछ ही क्षणों के बाद उसका स्वभाव फिर अंगड़ाई लेने लगा.
‘मैं ईश्वर हूं…मर्त्यलोक के हाल-चाल लेने अक्सर यहां आता रहता हूं. मुझे अपना काम करने दो…’
‘अगर तुम ईश्वर हो तो चोर की तरह आने की क्या जरूरत थी?’ कुत्ते ने तीखा सवाल किया. ईश्वर कुछ न बोला तो कुत्ते का संदेह फिर गहरा गया. उसने भौंकना आरंभ कर दिया.
‘तुम मुझे गुस्सा दिलाने की कोशिश कर रहे हो?’ इस बार ईश्वर का घमंड बाहर आया.
‘मैं इस बस्ती का अन्न खाता हूं. तुम यदि सचमुच ईश्वर हो तो मैं भी अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूं. इसलिए बिना यह जाने कि तुम जो कह रहे हो, वही सच है, मैं तुम्हें आगे नहीं बढ़ने दूंगा.’ कुत्ता अड़ गया.
‘तुम मंदिर में जाकर देख सकते हो, वहां रखी मूर्तियों से मेरी तुलना कर सकते हो.’
‘अच्छा! जितना तुम समझते हो, मैं उतना मूर्ख भी नहीं हूं. इस समय तक पुजारी मंदिर का दरवाजा बंद कर जा चुका होगा. उसको जगाकर पहले मैं मूर्ति देखूं, फिर यहां आकर तुम्हारे चेहरे का उससे मिलान करूं, इस बीच तुम अपना काम करके चलते बनो…उचित तो यही होगा कि तुम अपने ईश्वर होने का प्रमाण दो…नहीं तो मैं भौंक-भौंककर पूरी बस्ती को जगा लूंगा.’ ईश्वर को कुत्ते की शर्त माननी पड़ी. वे उस रूप में आ गए जो मंदिर की मूर्तियों से मिलता-जुलता था. कुत्ता क्षण-भर के लिए आश्वस्त हुआ. मगर अगले ही क्षण संदेह उसके दिलो-दिमाग पर फिर सवार हो गया—
‘रूप बदलना कोई बड़ी बात नहीं है, मैंने ऐसे अनेक बाजीगरों को देखा है, जो इस क्रिया में माहिर होते हैं. रूप बदलकर वे कुत्ता-बिल्ली तक बन जाते हैं. तुमने तो सिर्फ अपना भेष बदला है.’
‘तो तुम चाहते क्या हो?’ ईश्वर असमंजस में पड़ गए.
‘मैं इस बस्ती में एक ऐसे दंपति को जानता हूं जो बेहद ईमानदार और मेहनती हैं. पति-पत्नी दोनों सुबह से शाम तक मेहनत करते हैं, फिर भी उनका गुजारा नहीं होता. अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ दोनों को भूखे पेट सोना पड़ता है. फिर भी वे दूसरों की मदद के लिए हर समय तैयार रहते है. अपने आगे की थाली छोड़कर मैंने उन्हें भूखे को खाना खिलाते हुए कई बार देखा है. उनसे मिलकर तुम्हें स्वयं विश्वास हो जाएगा. अगर तुम सचमुच ईश्वर हो तो उन्हें उनके संकटों से मुक्ति अवश्य दिलाओ.’ कुत्ते ने शर्त रखी.
‘काश! मैं ऐसा कर पाता, असल में वे दोनों वही भोग रहे हैं, जो वे अपने भाग्य में लिखवाकर लाए हैं.’ ईश्वर ने असमर्थता दर्शाई.
‘चलो छोड़ो, तुम यदि उस गरीब और ईमानदार दंपति की मदद नहीं कर सकते तो न सही. वैसे भी वे दोनों बहुत स्वाभिमानी हैं. इस शहर में एक जमींदार है, उसने सैकड़ों गरीबों का हक मारा है. उनकी जमीन-जायदाद को नाजायज तरीके से हथियाया है, जिनमें वह गरीब दंपति भी शामिल हैं. आप आ ही गए हैं तो उसे दंड दीजिए. उस अत्याचारी से मुक्ति मिलते ही पूरे गांव की जिंदगी संवर जाएगी…’ कुत्ते ने दूसरी शर्त रखी.
‘मैं यह भी नहीं कर सकता…!’ ईश्वर बोले, ‘वह आदमी जो कर रहा है, उसका दंड उसको अगले जन्म में ही मिल सकता है.’
‘वाह, गजब हैं आप और आपका ईश्वरपन….’ कुत्ता गुस्से से बिफर गया, ‘आप बाली को पेड़ की ओट से मार सकते हैं, सिर्फ वेद पढ़ने के लिए शंबूक की हत्या कर सकते हैं. वैसा करने पर किसी भी शूद्र के कानों में सीसा घोलने जैसी व्यवस्था को सह सकते हैं. लोक-लीला के नाम पर अपनी निर्दोष, गर्भवती पत्नी को घर से निकाल सकते हैं, प्रणय-निवेदन को अपराध मानकर एक युवती का अंग-भंग कर सकते हैं…इतना सबकुछ कर सकते हैं आप, लेकिन किसी दोषी को दंड नहीं दे सकते, किसी जरूरतमंद की मदद नहीं कर सकते. अगर यही आपका ईश्वरपन है तो मैं थूकता हूं इस ईश्वरपन पर…’
ईश्वर की गर्दन शर्म से झुक गई. भ्रमण अधूरा छोड़ वे वापस अपने ठिकाने की ओर लौट गए. उसके बाद कुत्ते ने कभी उन्हें मर्त्यलोक में आते नहीं देखा.
ओमप्रकाश कश्यप

5 comments on “ईश्वरपन

  1. कुत्ता ने कर्तव्य को किया बखूबी पूर्ण।
    ईश्वर के अभिमान का खूब बनाया चूर्ण।

    रोचक लगी प्रस्तुति।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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