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एक कुत्ता मरकर स्वर्ग पहुंचा. उसके पुण्यों को देखते हुए उसको ईश्वर की सेवा में लगा दिया गया. कुत्ते को ईश्वर के घर तक पहुंचाने के लिए एक यमदूत उसके साथ कर दिया गया.
‘सुनो, ईश्वर के सामने पूछ मत हिलाना…उन्हें चमचागिरी कतई पसंद नहीं है.’
‘पर मैं तो कभी चमचागिरी करता ही नहीं…’
‘बनो मत, मैं अच्छी तरह जानता हूं, मृत्युलोक में तुम अपने मालिक के आगे हमेशा पूछ हिलाते रहते थे. इसी से तुम्हारा मालिक तुमसे प्रसन्न रहता था. वही पुण्य तुम्हारे खाते में जमा थे, जिनके कारण तुम्हें स्वर्ग मिला है.’
‘पूछ हिलाना तो मेरा स्वभाव है, अब अगर आदमी को यही पसंद हो तो मैं क्या कर सकता हूं.’ कुत्ते ने सहज होकर कहा.
‘कुछ भी हो, पर ईश्वर के आगे तुम पूछ मत हिलाना…’
‘कोई अपना स्वभाव एकाएक कैसे बदल सकता है?’ कुत्ता परेशान हो उठा.
‘यह तुम जानो, मैं तुम्हें ईश्वर के पास ले जा रहा हूं. वे नाराज हुए तो तुम्हें नर्क भी भेजा जा सकता है. वहां मत कहना कि बताया नहीं था.’
‘ठीक है.’ अनमने भाव से कुत्ते ने हामी भर दी.
‘एक बात और गांठ बांध लो, ईश्वर को झूठ कतई पसंद नहीं है, इसलिए जो सच हो वही कहना. वे अपने परीक्षा के लिए तरह–तरह परिक्षाएं भी लेते रहते हैं, ऐसा न हो कि ईश्वर को खुश करने के लिए तुम झूठ बक दो. इससे वे नाराज हो जाएंगे और वे यदि नाराज हों तो इस लोक में तुम्हें कहीं शरण नहीं मिलेगी.’
‘समझ गया.’
ईश्वर के घर छोड़कर दूत वापस लौट गया. ईश्वर उस समय आराम फरमा रहे थे. कुत्ता बिना–हिले डुले उनके आसन के निकट बैठ गया. थोड़ी देर के बाद ईश्वर ने आंखें खोलीं. उन्हें जागा देखकर कुत्ता खड़ा हो गया. उस समय वह इस बात से सावधान था कि पूंछ हिलने न पाए.
‘मृत्युलोक से कब आए?’ ईश्वर ने पूछा.
‘जी, आज ही.’
‘हूं, यूं तो यह सारी सृष्टि मेरी ही रचना है, लेकिन मृत्युलोक से मुझे बेहद प्यार है?’
‘अपनी रचना से सभी को प्यार होता है, फिर धरती पर तो अथाह सुंदरता है.’
‘और सबसे सुंदर है आदमी…वह मेरी सर्वश्रेष्ठ रचना है, जानते हो?’
‘जी, नीचे इंसान इसी गुमान में फूला रहता है.’ कुत्ते के मुंह से सच निकल पड़ा. ईश्वर नाराज न हों, इसलिए वह डर भी गया. लेकिन करे क्या समझ नहीं आया. पृथ्वी पर तो मालिक को पूंछ हिलाकर मना लेता था, पर यहां तो उसके लिए दूत ने पहले ही मना कर दिया है. जब कुछ समझ न आया तो उसने अपनी गर्दन जमीन से टिका ली.
‘वह मेरा सम्मान करता है. मेरी पूजा के लिए उसने मंदिर–मस्जिद–गुरुद्वारे बनवाए हुए हैं. आखिर वह मेरी सर्वोत्तम रचना है.’ खुशी ईश्वर के चेहरे से झलक रही थी.
‘सृष्टि के आरंभ से आज तक हुए सारे युद्धों में इतनी जानें नहीं गईं, जितनी मंदिर–मस्जिद और दूसरे धर्मस्थलों के नाम पर बही हैं.’ कुत्ते के मुंह से सच निकला. ईश्वर के कान हिलने लगे.
‘उसकी स्त्रियां मेरी पूजा के थाल सजाए रहती हैं. मुझे खुश करने के लिए वे वृत–उपवास रखती हैं. आखिर वह मेरी सर्वोत्तम रचना है.’ कहते हुए ईश्वर ने करवट बदली. बेचैनी उसके चेहरे से झलकने लगी थी.
‘वे सप्ताह में एक दिन उपवास रखती हैं, ताकि बाकी दिन भरपेट खाने को मिले. वे तुम्हारी पूजा करती हैं, ताकि तुम खुश होकर दूसरे के हिस्से का छीनकर उनको थमाते रहो.’ कुत्ते पर सचाई का भूत सवार था. पर ईश्वर का धैर्य जवाब दे चुका था. उसने ताली बजाई. चार कोनों से चार दूत बाहर आए, उन्होंने कुत्ते को चारों टांगों से पकड़ा और ईश्वर के महल से बाहर फेंक आए.
‘यह तो आदमी का भी बाप निकला.’ कुत्ता धूल झाड़ते हुए उठा और दूसरी दिशा में दौड़ लगा दी.
सुन्दर प्रस्तुति।
मेरी यही इबादत है।
सच कहने की आदत है।।
मुश्किल होता सच सहना तो।
कहते इसे बगावत है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
http://www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सच बोलने की आदत ने कुत्ते को स्वर्ग से बाहर कर दिया … इसलिए तो लोग झूठ बोलते हैं आजकल ताकि स्वर्ग में रह सकें।